Scandal and woman
लांछन और स्त्री
लांछन मनुष्य पर अपने कर्मों के अनुसार लगता है किंतु कुछ ऐसे लांछन है जो अर्थहीन है जिसका कोई मतलब नहीं है यह समाज के द्वारा लगाया जाता है और जिस व्यक्ति पर लगती है उसकी मानसिकता बदल देती है या फिर यूं कह ले कि यह किसी को प्रताड़ित करने का एक तरीका है जो हमारे समाज के विकास के लिए अवरोध हैं।
पुरुष की तुलना में स्त्रियों पर लांछन अधिक लगती है जो एक पारम्परिक लांछन बन गया है जैसे अभागन,कुलक्षण,बांझ यह ऐसे लांछन हैं जो स्त्रियों पर लगती आई है। यह लांछन लगने पर स्त्रियों का जीवन नर्कमय हो जाता है जो हमारे संसार को सवारता है उसी को प्रताड़ित करने का एक अच्छा बहाना समाज ने बना कर रखा है जो अर्थहीन है जिसका वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है जिसका मैं व्याख्या कर रहा हूं।
फिर भी स्त्रियों को हम लोग प्रताड़ित करते रहते हैं। ऐसा थोड़ी है कि उसका विवाह नहीं होगा। होगाअवश्य होगा जानते हैं क्यों क्योंकि परमात्मा ने ऐसा एक भी चीज नहीं बनाया है जिसका दूसरा भाग ना हो इस संसार में जितने भी वस्तु और प्राणी हैं उसका दो पहलू हैं अर्थात जोड़ा है। जैसे रात है तो दिन अवश्य होगी आम है तो ईमली अवश्य होगी आप कहीं भी किसी भी तथ्य में नजर दौड़ाते हैं तो आपको जोड़ा मिलेगा ही मिलेगा यह प्रकृति की एक निश्चित सिद्धांत है जो अटल है।
अंत में मैं यही कहूंगा कि स्त्रियों को इस लांछन से मुक्त करें जो हमारे समाज के विकास के लिए बहुत बड़ा अवरोध है। स्त्रियां हमारे समाज का अभिन्न अंग है जिसके बिना यह संसार क्या परमात्मा भी अधूरा है।
कुलक्षण:- जब स्त्री की विवाह होती है तब वह अपना सब कुछ त्यागकर नया संसार बसाने की इच्छा से अपना ससुराल जाता है जहां दो चार महीने उसे खूब मान-सम्मान मिलता है। इसके बाद जब उस घर में तरक्की नहीं होती तो ससुराल वाले उसे कुलक्षण करार दे देता है और कहता है कि इसके आने से हमारा घर का विकास रुक गया है अपनी और असामर्थ्य का दोष उस स्त्री के माथे पर थोप देता है।
अर्थात हमारे समाज ने उस स्त्री से धन वैभव की आशा रखता है। जब धन ही चाहिए था तब स्त्री से विवाह क्यों किया कोई बैंक से विवाह कर लेते तो धन ही धन होता यह भी कम पड़ जाए तो टक्साल से विवाह कर लेते हैं। जहां बच्चे के बदले में नोट ही पैदा होता उसी के साथ घूमते उसी के साथ रहते हैं क्या बात है हमारा समाज ने एक स्त्री को धन पैदा करने वाली एक वस्तु समझ लिया है जिसे मान सम्मान देना चाहिए उसे प्रताड़ित करने का बहाना ढूंढता रहता है।
कुलक्षण बोल कर उसे प्रताड़ित करता रहता है जबकि मुख्य दोष ससुराल वालों में है जो अपना विकास करने में असमर्थ हो जाता है। और अपनी असामर्थ्य को छुपाने के लिए अपनी पत्नी, अपनी बहू, अपनी भाभी को आगे कर देता है और कहता है कि सारा दोष इसी का है। इसे घर से निकालो जब तक यह हमारे घर में है तब तक हमारा विकास नहीं हो सकता। जब यह घटना आपकी बहन या बेटी के साथ होती है तो फिर आप की परिभाषा बदल जाती हैं और तुरंत आप नयालय का दरवाजा खटखटाने लगते हैं। ऐसा क्यों क्या हमारे समाज को मानसिक बीमारी पकड़ ली है। जो स्त्री को कई युगों से रोंधताआ रहा है अरे भाई अब तो बदल जाओ सब कुछ बदल रहा है पर हमारे समाज की मनोदशा नहीं बदल रही है अपने आप को ठीक कर लो बाकी सब ठीक है यदि हम अपने आप को भी बदल लिये तो फिर हमारा समाज समाज ना रह कर स्वर्ग बन जाएगा।
बांझ :-जब किसी स्त्री को बच्चा समय पर ना हो या शारीरिक कमी हो तो समाज उसे बांझ कहना शुरू कर देता है।और यहां तक कि घर परिवार के साथ-साथ आस-पड़ोस भी उससे घृणा करने लगता है। यदि सुबह-सुबह या कोई विशेष कार्य करने के लिए जा रहा हो तो निकलते समय उसका चेहरा नजर आ जाए तो कहता है कि मैंने बांझ को देख लिया अब मेरा काम सफल नहीं होगा जबकि वह कोशिश भी नहीं किया और अपनी असफलता का परिणाम उस स्त्री के माथे थोप देता है जिसका कोई कसूर ही नहीं है।
समय जब आगे तक निकल जाती है उस समय भी स्त्री एक बच्चा अपने परिवार को नहीं दे पाया तो पुरुष दूसरी विवाह कर लेता है। और पहली पत्नी को छोड़ देता है या फिर उसके साथ जानवरों से व्यवहार करता है आप जरा सोचें कि उस स्त्री पर क्या बीती होगी जो इस लांछन को झेलता है।
यदि स्त्री के अंदर किसी प्रकार की कमी है तो उसे निश्चित ही पूरा किया जा सकता है क्योंकि हमारा विज्ञान इतना विकास कर लिया है कि वह धूल-मिट्टी से बच्चा पैदा कर दें तो हम और आप एक मनुष्य हैं। आपको अपनी स्त्री पर विश्वास नहीं है पर विज्ञान पर तो विश्वास है हमारे विज्ञान ने हमें क्या नहीं दिया है आज हमारे पास जो कुछ भी सुविधाएं हैं वह सब विज्ञान की ही देन हैं तो फिर आप विज्ञान का सहारा क्यों नहीं लेते आप विज्ञान युग में रहकर उस युग में जी रहे हैं जिस युग में जानवर जिया करते हैं।
इस प्रकार देखा जाए तो हमारे समाज में स्त्रियों की दशा दयनीय है और उसकी दयनी होने का उत्तरदायित्व हम और आप हैं इसलिए हमारा कर्तव बनता है कि इस बुराई को समाज से निकाल कर फेंक दें क्योंकि हम मनुष्य हैं और मनुष्यता ही हमारा प्रधान गुण। हम क्यों उस सड़ी गली परंपरा को पकड़ कर रखे हैं जो हमारे समाज को दीमक की तरह चाट रहा है स्त्रियां हमारे समाज का अभिन्न अंग है इसे अलग नहीं किया जा सकता है हम आपको यह याद दिला दें कि जब जब किसी स्त्री को प्रताड़ित किया गया है तब-तब एक परिवार नहीं, एक गांव नहीं ,एक राज्य नहीं पूरा राष्ट्र उखड़ गया है।
जय वासुदेव श्री कृष्ण
अभागन :- जब स्त्रियां कुमारी होती है तब यह लांछन उसके माता-पिता, भाई-बहन, गोतिया और समाज के द्वारा लगाकर उसे प्रताड़ित किया जाता है। जब स्त्रियों का विवाह होने में देर हो जाते हैं या उनके माता पिता भाई-गोतिया उसका बर ढुढने में असमर्थ हो जाता है। तब उसका एक नया नाम रख दिया जाता है अभागन और यह लांछन उस स्त्री पर इतनी बुरी तरह हावी होता है कि उसका हंसता खेलता जीवन खामोशी में सिमट जाता है। उसके दिलो दिमाग पर यह लांछन प्रभावी रूप से काम करता है और वह औरों की तुलना में अपने आप को एक लाचार और बेबस पाता है। और इस लाचारी का फायदा कोई होशियार बड़ा आसानी से उठा लेता है। और यही से उस स्त्री का दुर्भाग्य शुरू हो जाती है जो आगे चलकर उसके जीवन को तहस-नहस कर देता है जिससे वह ना घर का रहता है और ना घाट का केवल एक लांछन उसके पुरे जीवन को बदल कर रख देता हैं।
अंत में मैं यही कहूंगा कि स्त्रियों को इस लांछन से मुक्त करें जो हमारे समाज के विकास के लिए बहुत बड़ा अवरोध है। स्त्रियां हमारे समाज का अभिन्न अंग है जिसके बिना यह संसार क्या परमात्मा भी अधूरा है।
कुलक्षण:- जब स्त्री की विवाह होती है तब वह अपना सब कुछ त्यागकर नया संसार बसाने की इच्छा से अपना ससुराल जाता है जहां दो चार महीने उसे खूब मान-सम्मान मिलता है। इसके बाद जब उस घर में तरक्की नहीं होती तो ससुराल वाले उसे कुलक्षण करार दे देता है और कहता है कि इसके आने से हमारा घर का विकास रुक गया है अपनी और असामर्थ्य का दोष उस स्त्री के माथे पर थोप देता है।
अर्थात हमारे समाज ने उस स्त्री से धन वैभव की आशा रखता है। जब धन ही चाहिए था तब स्त्री से विवाह क्यों किया कोई बैंक से विवाह कर लेते तो धन ही धन होता यह भी कम पड़ जाए तो टक्साल से विवाह कर लेते हैं। जहां बच्चे के बदले में नोट ही पैदा होता उसी के साथ घूमते उसी के साथ रहते हैं क्या बात है हमारा समाज ने एक स्त्री को धन पैदा करने वाली एक वस्तु समझ लिया है जिसे मान सम्मान देना चाहिए उसे प्रताड़ित करने का बहाना ढूंढता रहता है।
कुलक्षण बोल कर उसे प्रताड़ित करता रहता है जबकि मुख्य दोष ससुराल वालों में है जो अपना विकास करने में असमर्थ हो जाता है। और अपनी असामर्थ्य को छुपाने के लिए अपनी पत्नी, अपनी बहू, अपनी भाभी को आगे कर देता है और कहता है कि सारा दोष इसी का है। इसे घर से निकालो जब तक यह हमारे घर में है तब तक हमारा विकास नहीं हो सकता। जब यह घटना आपकी बहन या बेटी के साथ होती है तो फिर आप की परिभाषा बदल जाती हैं और तुरंत आप नयालय का दरवाजा खटखटाने लगते हैं। ऐसा क्यों क्या हमारे समाज को मानसिक बीमारी पकड़ ली है। जो स्त्री को कई युगों से रोंधताआ रहा है अरे भाई अब तो बदल जाओ सब कुछ बदल रहा है पर हमारे समाज की मनोदशा नहीं बदल रही है अपने आप को ठीक कर लो बाकी सब ठीक है यदि हम अपने आप को भी बदल लिये तो फिर हमारा समाज समाज ना रह कर स्वर्ग बन जाएगा।
बांझ :-जब किसी स्त्री को बच्चा समय पर ना हो या शारीरिक कमी हो तो समाज उसे बांझ कहना शुरू कर देता है।और यहां तक कि घर परिवार के साथ-साथ आस-पड़ोस भी उससे घृणा करने लगता है। यदि सुबह-सुबह या कोई विशेष कार्य करने के लिए जा रहा हो तो निकलते समय उसका चेहरा नजर आ जाए तो कहता है कि मैंने बांझ को देख लिया अब मेरा काम सफल नहीं होगा जबकि वह कोशिश भी नहीं किया और अपनी असफलता का परिणाम उस स्त्री के माथे थोप देता है जिसका कोई कसूर ही नहीं है।
समय जब आगे तक निकल जाती है उस समय भी स्त्री एक बच्चा अपने परिवार को नहीं दे पाया तो पुरुष दूसरी विवाह कर लेता है। और पहली पत्नी को छोड़ देता है या फिर उसके साथ जानवरों से व्यवहार करता है आप जरा सोचें कि उस स्त्री पर क्या बीती होगी जो इस लांछन को झेलता है।
यदि स्त्री के अंदर किसी प्रकार की कमी है तो उसे निश्चित ही पूरा किया जा सकता है क्योंकि हमारा विज्ञान इतना विकास कर लिया है कि वह धूल-मिट्टी से बच्चा पैदा कर दें तो हम और आप एक मनुष्य हैं। आपको अपनी स्त्री पर विश्वास नहीं है पर विज्ञान पर तो विश्वास है हमारे विज्ञान ने हमें क्या नहीं दिया है आज हमारे पास जो कुछ भी सुविधाएं हैं वह सब विज्ञान की ही देन हैं तो फिर आप विज्ञान का सहारा क्यों नहीं लेते आप विज्ञान युग में रहकर उस युग में जी रहे हैं जिस युग में जानवर जिया करते हैं।
इस प्रकार देखा जाए तो हमारे समाज में स्त्रियों की दशा दयनीय है और उसकी दयनी होने का उत्तरदायित्व हम और आप हैं इसलिए हमारा कर्तव बनता है कि इस बुराई को समाज से निकाल कर फेंक दें क्योंकि हम मनुष्य हैं और मनुष्यता ही हमारा प्रधान गुण। हम क्यों उस सड़ी गली परंपरा को पकड़ कर रखे हैं जो हमारे समाज को दीमक की तरह चाट रहा है स्त्रियां हमारे समाज का अभिन्न अंग है इसे अलग नहीं किया जा सकता है हम आपको यह याद दिला दें कि जब जब किसी स्त्री को प्रताड़ित किया गया है तब-तब एक परिवार नहीं, एक गांव नहीं ,एक राज्य नहीं पूरा राष्ट्र उखड़ गया है।
जय वासुदेव श्री कृष्ण
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