शुभं करोति कल्याणं कलनग्यं धनसम्पदा। शत्रु बुद्धिनविनाशाय दीपज्योतिरनस्तुते ।।

Tuesday, July 16, 2019

Disability and torture of society

                    अपंगता और समाज की प्रताड़ना



अपंग होना यह उसके कर्मों का खेल है किंतु जब मनुष्य को  कोई समाज प्रताड़ित करता है तो उसका परिणाम क्या होता है कुछ नहीं समाज का तो कुछ बिगड़ता नहीं किंतु उस मनुष्य का जीवन हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है या फिर वह मनुस्य  उस  रास्ते पर चल पड़ता है जिसका वह कभी कल्पना भी नहीं किया था। और यह रास्ता उसके जीवन को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाता है जो पूरी  तरह  समाज का ही देन है


 हमारे समाज में ऐसे अनेक बुराइयां फैली हुई है जिसको एक एक कर कर उखाड़ना  हमारे बस की बात नहीं है फिर भी हमारे नजर में जो आया है मैं उसकी व्याख्या कर रहा हूं अर्थात मैं यहां पर अपंगता और समाज की प्रताड़ना के ऊपर  हमारा लेख है।


उस लड़के का नाम समीर था जो बचपन से ही गंभीर स्वभाव का था।
परमात्मा ने उसे एक गहरी चोट दी थी। अर्थात वह शारीरिक रूप से अपंग  था जिसके कारण वह हमेशा मायूस रहता था।

 उसके जीवन को समझने के लिए मैंने उसके जीवन को तीन भागों में बांटा बचपना जवानी और अधेड़ अवस्था आइए देखते हैं कि उसके  जीवन में और कितनी ठोकर खाना बाकी है।



  • बचपना :- बचपन में आपने इस अवस्था का कारण वह हमेशा मायूस रहा करता था।  जब भी वह अपने शाखा या मित्रों के साथ खेलता था तो उसके मित्रों ने उसे चिढ़ाने के अलावा और कुछ भी नहीं दिया जिसके कारण वह दुखी और निराश हो जाता था।  निराश होकर वह किसी एकांत जगह पर बैठकर परमात्मा से यही दुआ करता था यही प्रार्थना करता था कि है परमात्मा हमने ऐसी कौन सी भूल की है जो हमें इतनी बड़ी सजा मिला हमारा बचपन यारों का मनोरंजन बनकर रह गया मैं मनोरंजन करने गया था। किंतु मैं ही मनोरंजन का निवाला बन गया है परमात्मा यदि हमसे कोई भूल हुई हो तो हमें क्षमा करें।


यह सोचकर वह आगे की ओर निकल पड़ा और हंसी-खुशी जीवन जीने की चाहत में एक कदम और आगे चल पड़ा।  उसने अपनी जिंदगी में पढ़ाई लिखाई बड़ी मुश्किल स्थिति में की ताकि उसका जीवन सुधर जाए। किंतु उसकी नियति को कुछ और ही मंजूर था जिसका वह कभी कल्पना भी नहीं किया था।
                   

  • जवानी:-अब वह अपने जीवन की जवानी की दरवाजे पर पहला कदम रखा जिस तरह सभी नौजवान अपने विपरीत लिंग को देखकर आकर्षित होता है उसी तरह वह भी आकर्षित हुआ किंतु उसकी अपंगता के कारण हर एक विपरीत लिंग वाली उसका इस कदर मजाक उड़ाया की उसका सारा जीवन एक मजाक बनकर रह गया।


उसने भी अपने जीवन को रंग बिरंगे रंगों से रंगा था किंतु समय की मार ने उसकी हर एक रंग को बैरंग कर दिया अब वह मायूस और लाचार होकर एकांत प्रिय रहने लगा।

फिर भी वह जीना चाहता था पर हमारा समाज उसे जीने नहीं देता था ना उसका  कोई अपना कदर करता था और ना कोई  पराया कदर करता था इस ठोकर से वह इतना टूट गया कि उसमें उठने की क्षमता ना के बराबर हो गई फिर भी वह अपने दम पर ऊपर उठने की हर संभव प्रयास किया।


किंतु दूसरी ओर हर मनुष्य की शरीर का अपना कुछ एक है मांग होता है जो समय पर ना मिलने पर मनुष्य की दिलो दिमाग पर बुरा असर पड़ता है वह मांग उसके जीवन में भी आया वह मांग कामवासना था अर्थात वह भी स्त्रियों की साथ संभोग करने की चाहत रखने लगा पर उसे कोई भी स्त्री पत्ता नहीं देता था। अंत में वह दो चार पैसा कमाकर वेश्यालय पहुंच गया जहां पर वह स्त्रियों से अपना संबंध बनाया किंतु फिर भी वह समाज से भयभीत रहता था। इस समाज के भय के कारण वह अपनी कामवासना की जिज्ञासा को या चाहत को पूरा नहीं कर पाया और अंत में उसकी विवाह हो गई।


  • अधेड़ :- शादी होने के उपरांत वह अपने पत्नी से बहुत अधिक प्रेम करता था क्योंकि उसे ऐसा लगता था कि अब हमारा यही सब कुछ है और मैं उसके ही साथ रहकर आगे हमें जो करने की इच्छा है या हमें जो परमात्मा ने जिस उद्देश्य के लिए भेजा है मैं उस कार्य को पूरा कर पाऊंगा किंतु उनका यह दुर्भाग्य उनका साथ छोड़ने को तैयार ही नहीं पत्नी भी मिली तो ऐसी मिली कि वह पूरी तरह एक चरित्रहीन औरत थी जिसके कारण उसके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जो उसका सारा जीवन हिला कर रख दिया मानव वह एकांत में इस कदर रो पड़ा की  समुंद्र की गहराई भी उसकी आंखों की आंसू आगे  कम पड़ गया।


अर्थात उसे एचआईवी की बीमारी पकड़ ली जिससे उसका जीवन 2-4 साल के उपरांत समाप्त हो गया। अपंगता ने और समाज की प्रताड़ना ने उसका जीवन ही समाप्त कर दिया हमारे समाज में इस तरह कितनी बुराई फैली हुई है जिससे आए दिन भले इंसान का जीवन बलि के बकरे के सामान हो जाता है।

                                                जय वासुदेव श्री कृष्ण

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