शुभं करोति कल्याणं कलनग्यं धनसम्पदा। शत्रु बुद्धिनविनाशाय दीपज्योतिरनस्तुते ।।

Sunday, December 23, 2018

Merit of success


                                           सफलता के गुण



इस जगत में हर कोई सफल होना चाहता है पर उसमें किसी को सफलता मिलती है। तो कोई असफल हो जाता है जो सफल है वह तो ठीक है उसका उद्धार हो गया पर जो असफल है उसका क्या उसे कैसे सफलता मिलेगी उसने कहाँ चुक की जो असफल हो गया हैं। जीतने भी सफल व्यक्ति हैं उसमें विशेष पाँच गुण पाए जाते हैं और वह उसे उसी पाँच गुण के बदौलत सफल हुए हैं। अर्थात हमें भी सफल होने के लिए उस पांच गुणों को धारण करना होगा तभी हम सफल हो पाएंगे तो वह पाँच गुण क्या है।  तो वह पाँच गुण धर्म, समर्पण, धैर्य, प्रेम और न्याय है। यदि इसे हम ग्रहण कर ले तो हमारी सफलता निश्चित है किंतु धारण करने से पूर्व हमें अर्थ जानना अनिवार्य है।  यदि हम उसका अर्थ नहीं समझेंगे तो उस गुण या शक्ति का प्रयोग सही रूप में नहीं कर पाएंगे तो इसका अर्थ समझने का प्रयास करते हैं



धर्म:- धर्म शब्द जब हमारे सामने आता है तो हम किसी विशेष समुदाय की ओर इशारा करते हैं जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई इत्यादि  तो क्या इसे हम अपना धर्म मान ले या फिर विचार करें कि मेरा धर्म क्या है।  धर्म का वास्तविक अर्थ होता है कि हम जो कार्य कर रहे हैं वह कहां तक उचित है और कहां तक अनुचित है इसे ही धर्म कहते हैं किंतु हम कैसे जाने कि  क्या उचित है या अनुचित है हमें कौन बताएगा तो जनाब आपका धर्म का निर्णय करने वाला आपके भीतर बैठा हुआ है जब आप कोई कार्य करते हैं तो यदि वह कार्य गलत हो तो आप के अंदर से यह इच्छा प्रकट होती है कि नहीं यह कार्य सही नहीं है अर्थात आपका धर्म आपको निर्णय दे दिया है फिर भी आप किसी से प्रभावित होकर या स्वार्थबस होकर कार्य करते हैं जिसको आपका धर्म इंकार कर चुका है फिर भी आप करते हैं और असफ़ल होते हैं।  यदि आप अपने धर्मों को समझ लेते हैं तो सफलता निश्चित ही मिलती और असफ़लता मनुष्य को तभी मिलती है जब वह अपने धर्म के विपरीत कार्य करता है।



समर्पण:- समर्पण वह भाव है जो व्यक्ति को सफलता दिलाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आप जिस कार्य में सफल होना चाहते हैं उसके प्रति आप समर्पित नहीं है तो सफलता की आशा आप कैसे रख सकते हैं। आप जिस कार्य में अपने आप को जितना समर्पित करेंगे उतना हीआपको सफलता मिलेगी समर्पित करने से पूर्व यह विचार कर ले कि आप जिस कार्य के प्रति समर्पित हो रहे हैं क्या वह मेरा ही धर्म है या फ़िर दुसरे से प्रभावित होकर समर्पित हो रहे हैं तो यदि वह आपका धर्म है तो निश्चित ही सफलता मिलेगी वह भी बिना सहायता की अगर वह आपका धर्म नहीं है और आप औरों से प्रभावित होकर  समर्पित हो रहे हैं तो आप सफल नहीं हो पाएंगे क्योंकि आपके मन में नौ -छो लगी रहेगी तो फिर आप सफल कैसे हो पाएंगे जब आपका विश्वास ही डगमगा रहा हो  इसलिए सफल होने के लिए अपनी धर्म की सुने तभी आप पूर्ण समर्पण कर पाएंगे।



प्रेम :- प्रेम का मतलब तो आप जानते होंगे और यह सब के पास है किसी के पास ज्यादा तो किसी के पास कम है।  किंतु प्रेम करना एक अलग बात है और प्रेमपूर्ण होना एक अलग ही बात है। जो प्रेम करते हैं उसे अंत में निराशा हाथ लगती हैं क्योंकि उसने प्रेम नहीं किया है लगाव रखा है और ऐसे लगाव रखा कि यदि वह हाथ से निकल जाए तो मानो उसके ऊपर कोई पहाड़ टूट जाता है। और जब पहाड़ टूटता है तो फिर वह और किसी से प्रेम नहीं कर पाता है निराशा उसे ऐसे जकड़ लेती हैं कि द्वारा प्रेम उत्पन्न होने नहीं देता जिससे उसे असफलता हाथ लगती है।


और प्रेमपूर्ण होना सफलता का राज है जो व्यक्ति प्रेमपूर्ण होते हैं उसे किसी प्रकार हताशा निराशा नहीं पकड़ता और समय के साथ वह भी परिवर्तित हो जाता है। और जो समय के साथ परिवर्तित होता है तो उसे सफलता मिलना स्वाभाविक है।  इसलिए हमें हमेशा समय के साथ चलना चाहिए समय यदी हमसे आगे निकल जाए तो भी हम असफल कहलाते हैं या पीछे छूट जाए तो भी हम असफल कहलाते हैं। इसलिए समय के साथ-साथ चलें और समय के साथ-साथ प्रेमी नहीं प्रेमपूर्ण ही चल सकते हैं। जो प्रेमपूर्ण नहीं है वह समय के साथ नहीं चल सकता यदि हम समय के साथ चलते हैं और समय हमारा साथ चले तो फिर कौन हमें सफल होने से रोक सकता है।



धैर्य :- आज जिस युग में हम चल रहे हैं जहां नींद में भी इंसान तोड़ता है। इतनी जल्दी लगी हुई है कि 12 घंटे की रात को वह चाहता है कि 1 घंटे में सुबह हो जाए जो संभव ही नहीं है। तो बिना धैर्य का सफल होना कैसे संभव है यह प्रकृति अपने नियम अनुसार चलती है तो रात से सुबह होने में जो समय लगता है उस समय आप अपने अंदर धैर्य का धारण करें धैर्य के अलावा यदि आप इधर उधर हाथ पैर मारेंगे तो केवल आपको परेशानी ही मिलेगी सफलता नहीं।


उसी प्रकार जब हम किसी कार्य के लिए मेहनत करते हैं तो हम सफल होना शुरू से ही चाहते हैं। जिसके कारण विफल हो जाते हैं यदि हम कार्य करते जाएं और सुबह होने तक धैर्य रखें तो सफलता अवश्य मिलेगी। पर मनुष्य अपने कार्य  से ज्यादा अपने कार्य के परिणाम पर ध्यान देता है। जिससे वह जीस परिणाम का आशा करता है वह उसे मिलता नहीं है कारण उसका ध्यान परिणाम पर था कार्य पर नहीं यदि वह धैर्य को धारण करता तो उसका ध्यान कार्य पर होता अपने कार्य के परिणाम पर नहीं और फ़िर अपने कार्य के परिणाम के रूप में सूर्य उदय को देखता।



न्याय :- सफल होने के लिए न्यायवान होना जरूरी है अब न्याय किसके साथ किया जाए तो अपने साथ यदि आप  अपना न्याय करने में सफल हो गए हैं।  तो आप सभी का न्याय कर पाएंगे क्योंकि दूसरों का न्याय करना बड़ा आसान है दूसरों की भावनाओं को हम समझ नहीं पाते हैं इसलिए बड़ी आसानी से उसका न्याय कर देते हैं वह जो  महसूस कर रहा है यह जरूरी नहीं कि हम भी वही महसूस करें ऐसा संभव नहीं है क्योंकि सब की भावना अलग अलग होती है इसलिए पहले अपनी भावनाओं को समझें तभी आप दूसरों की भावना समझ पाएंगे यहां हर व्यक्ति अपने साथ अन्याय करके बैठा हुआ है जिसके कारण उसे असफलता  मिलती रहती है।  यदि वह अपने साथ न्याय किया होता तो आज वह असफल नहीं होता।  आज के दौर में मनुष्य अपने से ज्यादा दूसरों की गलतियों को गिनने में लगा है और जब अपनी बारी आती है तो सारी हवा निकल जाती है जिसके कारण वह अपने साथ ही अन्याय कर बैठता  है जो उसे एक कदम पीछे धकेल देता है।


जैसे मान लीजिए कि  x को  सोने की इच्छा और y  को जागने की इच्छा है तो x अपनी विरुद्ध होकर y  के साथ बैठ गया और x  को नींद आ रही है तो वह ना y  के साथ बैठ पा रहा है और ना ही सो पा रहा है अर्थात वह अपना नींद तो खराब किया ही और y  का जागना भी खराब कर दिया था वह दोनों जगह विफल हो गया यदि वह अपने साथ न्याय करके  सोया हुआ होता तो ना वह विफल होता और ना ही y विफल होता।

                                                      जय वासुदेव श्री कृष्ण

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