शुभं करोति कल्याणं कलनग्यं धनसम्पदा। शत्रु बुद्धिनविनाशाय दीपज्योतिरनस्तुते ।।

Saturday, December 8, 2018

What is destiny?

                                                नियति है क्या 

जब किसी के साथ कोई घटना घटती हैं तो वह कहता हैं की यही मेरा नियति है हम क्या कर सकते हैं यह परमात्मा के मर्जी से हुआ हैं ऐसा क्यू कहता हैं और सारा दोष नियति पर ही क्यू डालता हैं। नियति वास्तव में होता क्या हैं और यह कैसे कार्य करती हैं। आइए जानने का कोशिश करते है।


हमारी नजरो में नियति है क्या हैं यह में आपको सधारण भाषा मैं समझाने की कोशिस करूँगा। जो मैं अब तक समझ पाया हूँ जहाँ तक मुझे समझ मैं आया हैं।  यह जरुरी नहीं हैं की मैं जो कह रहा हूँ वह सत्य हैं यह आपके बिवेक पर निर्भर करता हैं की आप किसी तथ्य को कैसे देखते हैं।


परमात्मा :- यह ईश्वरीय प्रोग्राम है जो एक नियम के द्वारा चलती है या फिर यूं कह ले की संपूर्ण विश्व एक नियति हैं और इस नियति के अंदर अनंत नियति है जिसकी गणना हम आप या कोई और नहीं कर सकते हैं।  यह हमारी बुद्धि ज्ञान से परे हैं क्योंकि हमारी बुद्धि और ज्ञान की सीमा प्रकृति के द्वारा निश्चित कर दी गई है।  जैसे मान लीजिए कि हम किसी उड़ती हुई पंछियों को देख रहे हैं और हम उसे वहीं तक देख सकते हैं जहां तक देखने की क्षमता हमारे पास है उससे आगे हम नहीं देख सकते हैं और वह पक्षी उड़ती हुई कुछ दूर चली गई इसका मतलब यह नहीं कि वह पंछी आगे उड़ नहीं रही है वह उड़ रही है पर हमारे आंखों की इतनी क्षमता नहीं है कि हम उसे आगे तक देख सके इसी तरह नियति को समझने की जो विवेक हमारे पास है उसकी अपनी एक सीमा है और उस सीमा से हम आगे नहीं जा सकते हैं। हां उसे अनुभव अवश्य कर सकते हैं पर अनुभव हम तभी कर सकते हैं जब हम अपने आप को शून्य कर ले शांत हो जाए तो फिर वह सब संभव है जो हमारे ज्ञान से परे हैं। हम अपनी भौतिक शरीर में रहकर उस परे तक जा सकते हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते है। वहाँ तक जाने के लिए हमें अपने आप को इस नियति के प्रति समर्पित होना होगा अर्थात अपने आपको ईश्वर बनाना होगा जहाँ तेरा -मेरा, अपना -पराया, लाभ -हानि, मोह, अहंकार इत्यादि गुणों को समाप्त करना होगा तभी ईश्वर बन पाना संभव है अन्यथा यह असम्भव है। 


परमात्मा ने हर एक को नियति प्रदान की है और वह अपनी नियति के अनुसार कार्य करती है। केवल मनुष्य ही है एक ऐसा प्राणी हैं जो इस नियति के परे जा सकती हैं किंतु हमें वहां तक जाने के लिए तीन बाधाओं को पार करना होगा जो निम्न्न हैं। 


सवभाव :- हर मनुष्य की अपनी एक स्वभाव  होती है और वह अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करती है जैसे नदी ,नदी का स्वभाव होता है नीचे की और बहना वह कभी ऊपर की ओर नहीं बहती हैं और नदी अपने स्वभाव में परिवर्तन नहीं कर सकती हैं परन्तु प्रभावित अवश्य होती है। किंतु मनुष्य अपने स्वभाव में परिवर्तन कर सकता है और परिवर्तन करने से ही उसकी नियति बदल जाती है और वह उस मुकाम को छू लेता है जिसका वह कभी कल्पना भी नहीं किया था। यदी वह अपने स्वभाव में परिवर्तन नहीं करता हैं और एक ही स्वभाव को पाले रखता है तो वह एक विशेष मनोदशा में चला जाता है और वह मनोदशा ही उसकी नियति बन जाती है।



 मनोदशा :-  एक ही स्वभाव को पाले रहना और उसमें परिवर्तन ना करने से वह एक विशेष मनोदशा में चला जाता है। जैसे एक बच्चा बचपन से चोरी करता है और जवानी तक आते आते वह चोर बन जाता है वह अपने स्वभाव में परिवर्तन नहीं करता है तो वह चोरी करने की मनोदशा को प्राप्त कर लेता है इसे ही हम मनोदशा कहते हैं। आपकी जैसी मनोदशा होगी वैसा ही आपका भविष्य होगा और जो मनुष्य अपनी मनोदशा से ऊपर उठ जाता है वह नियति के परे को देखता है वह ईश्वर हो जाता है। 



प्रभाव :- हमारे स्वभाव पर जब किसी का प्रभाव पड़ता है और हम उसके अनुसार ही कार्य करते हैं तो उसे प्रभाव कहते हैं अर्थात अपना स्वभाव को त्याग कर दूसरे के स्वभाव को ग्रहण कर लेना ही प्रभाव कहलाता है हर मनुष्य अपने जीवन में प्रभावित होता रहता है।  जैसे पानी का स्वभाव बहना है यदि हम उसे जीरो डिग्री तापमान पर ले जाए तो वह बर्फ बन जाता है। अर्थात् पानी उस वातावरण के स्वभाव को ग्रहण कर लिया है तो उसे अब बर्फ कहा जाएगा पानी नहीं और ठोसपन उसका नियति बन जाता है। 



इस प्रकार देखा जाए तो मनुष्य किसी बुरे प्रभाव में आकर वह बुरा बन जाता है और यह उसकी नियति बन जाती है और जब उसका परिणाम आता है तो वह दूसरे को दोष देता है।यदी कोई दोष ना मिले तो कहता है कि यही मेरा नियति है जिसका निर्माण वह खुद किया है। यदि वह चाहता तो अपनी नियति में परिवर्तन कर सकता था और वह उस परम ऊंचाई को छू सकता था। 



अर्थात हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि नियति पानी की तरह होता है जिसमे मिला दो वो वैसा ही बन जाता है और जो अपने आप को शून्य कर लेता है और प्रकृति के नियति द्वारा कार्य करता है वह सभी बाधाओं से मुक्त होकर इस नियति के चक्रव्यूह से बाहर निकल जाता है क्योंकि स्वभाव से ही नियति की निर्माण होती है।

                                                               जय वासुदेव श्री कृष्ण  

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