शुभं करोति कल्याणं कलनग्यं धनसम्पदा। शत्रु बुद्धिनविनाशाय दीपज्योतिरनस्तुते ।।

Wednesday, December 5, 2018

Wisdom and Knowledge

                                            विद्या और ज्ञान 

विद्याऔर ज्ञान इस दोनों शब्द का अर्थ हमलोग एक ही निकालते हैं। पर वास्तव मैं दोनों मैं भारी अन्तर हैं एक सीमित हैं तो दूसरा असीमीत हैं एक का अनुसरण सारा जग करता हैं तो दुसरा बड़ा अनमोल हैं जो भाग्यशाली को ही मिलता हैं अब प्रशन उठता हैं की कैसे हम समझे की दोनों मैं भारी अन्तर हैं तो आइये इसे समझने का कोशिस करते हैं।

 हमारी नजरो में विद्या और ज्ञान क्या हैं यह में आपको सधारण भाषा मैं समझाने की कोशिस करूँगा। जो मैं अब तक समझ पाया हूँ जहाँ तक मुझे समझ मैं आया हैं।  यह जरुरी नहीं हैं की मैं जो कह रहा हूँ वह सत्य हैं यह आपके बिवेक पर निर्भर करता हैं की आप किसी तथ्य को कैसे देखते हैं।


a/विद्या  :- विद्या हैं क्या जो हम स्कुल से प्राप्त करते हैं। जी हा किन्तु मैं केवल इसी का बात नहीं कर रहा हूँ मैं यहाँ वह तमाम कला की बात कर रहा हूँ  जो हर एक व्यक्ति के पास अपनी जीविका को चलाने के लिए एक कला होती हैं जिसके माध्यम से वह अपना जीवन यापन करता है किन्तु फिर भी वह दुखी और निराश हैं क्यू इसके क्या कारण हैं इसी तरह मेरे मन मैं प्रशन उठते हैं आपके मन में भी उठते होंगे इसे ही जानने का कोशिस करता हूँ मैं यहाँ विद्या को दो श्रेणी में बाटता हू एक विद्या दूसरा कला। 

१/ प्रथम श्रेणी :- यहाँ मैं उस विद्या की बात कर रहा हु जो हम स्कुल से प्राप्त करते हैं किसी संस्था से प्राप्त करते हैं इसे लेकर हम डॉक्टर ,इंजीनियर ,वकील जस्टिस मैनेजर इसी तरह नाना प्रकार के इस विद्या के नाम पड़े हैं  फिर भी खुश नहीं हैं और अपने आपको एक पिंजड़ा में पाते हैं क्यू ?


 इसका उत्तर कुछ इस प्रकार है की मान लीजिये की Z  नाम का व्यक्ति ने कानून का निर्माण किया अब इस कानून को A से लेकर Y तक का मनुष्य इसे ग्रहन कर रहे अर्थात यह सभी Z की भाषा बोल रहे इनका अपना कुछ नहीं हैं जब हम किसी का भाषा बोलते हैं तो हमे तोता कहा जाता हैं जिसने केवल रटना सीखा और रटने के कारण ही यह पिंजड़े में हैं और पिंजड़े का तोता बोल तो सकता हैं पिंजड़े में घुर सकता हैं पर उड़ नहीं सकता यहाँ उड़ सकता हैं तो केवल Z उड़ सकता हैं क्यूकि उसने अपनी भाषा बोला हैं वह इन लोगों के भाति रटा नहीं हैं और Z इतना उड़ रहा हैं की सारी दुनिया इन्ही का भाषा बोल रहा हैं तो भाई Z बनो तभी उड़ सकोगे नहीं तो सारा जीवन पिजड़े में ही रहोगे।

 अब यहाँ प्रशन उठता हैं की कोनसा पिंजड़ा किस पिंजड़े की बात कर रहे हैं तो मैं प्रकृति के पिंजड़े की बात कर रहा हूँ यहाँ जो ओरो की भाषा बोलता हैं वह जीवन और मृत्यु के पिजड़े में कैद रहता हैं क्यूकि प्रकृति ने आपको अपनी भाषा बोलने के लिए भेजा हैं और आप ओरो की भाषा बोल रहे हैं यहाँ जो ओरो की भाषा बोलता हैं वह प्रकृति के पिंजड़े से कभी नहीं छूटता हैं। और ना ही प्रकृति इनका साथ देती हैं।


२/ द्वितीय श्रेणी:-इस श्रेणी में कला आती हैं जिसे हम अपनी परम्परा से प्राप्त करते हैं जैसे एक रिंग मास्टर शेर को उछलना -कूदना सिखाती हैं वैसे ही हमारे बाप -दादा और गुरु यह कला सिखाती हैं की सीख ले बेटा जीवन में काम आएगा और हम सीखते हैं इसलिए सीखते है की ताकि मेरा जीवन सुखी रहे पर क्या हम वास्तव में सुखी होते मुझे तो नहीं लगता की हम सुखी होते हैं थोड़ा सोचे की एक क्या रिंग मास्टर के अधीन रहकर सुखी रह सकता हैं कभी नहीं तो फिर हम जंगल की और चले तभी हम सुखी रह सकते हैं क्यू शेर होकर भी हम पिंजड़े में हैं जब तक हम इस पिंजड़े में हैं तब तक हमे वह जंगल का आनंद नहीं मिल सकता हैं। जंगल अर्थात प्रकृति का आनंद और मुझे प्रकृति का आनंद तभी मिलेगा जब हम अपनी भाषा बोलेगे जब तक हम ओरो की भाषा बोलेंगे तब तक हम पिजड़े में ही रहेंगे।


b/ज्ञान :-   ज्ञान क्या हैं और यह क्या सभी के पास है जी हा यह सभी के पास हैं किन्तु हम उस ज्ञान का प्रयोग नहीं करते जो हमारे भीतर हैं इसके प्रयोग ना करने के कई कारण हैं जैसे लाभ -हानि ,तेरा -मेरा ,उच्च -नीच ,मोह ,इस्या इत्त्यादि। इन सभी कारणों से हम अपने ज्ञान का प्रयोग नहीं कर पाते और बिना कुछ किये हम यहाँ से चले जाते हैं जिसके कारण हमारा सारा जीवन व्यर्थ हो जाता हैं।


परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य को एक अद्धभुत ज्ञान प्राप्त किया हैं। इस दुनिया में ऐसा एक भी मनुष्य नहीं जिसके पास एक विशेष ज्ञान ना हो सभी मनुष्य के पास एक अवश्य होता यदि हम उसे पहचान ले तो सारी दुनिया को अपनी जेब में लेकर घूरेंगे किन्तु हम ऐसा कर नहीं पाते कारण अपने ज्ञान को ना पहचान पाना।


अब इस ज्ञान को पहचाने के लिए या उसे अमल में लाने के लिए हमे किसी गुरु या स्कुल में नहीं जाना यह तो हमारे भीतर है जैसे जब कोई जानवर या फिर मान लीजिये एक कुत्ता जब यह अपने बच्चे को जन्म देता हैं तो वह अपने बच्चे को क्या सिखाता हैं कुछ भी नहीं किन्तु जीवन में जिस भी समय जिस ज्ञान की आवश्कता होती वह उस समय प्रकट हो जाता जैसे आप किसी कुत्ते को तालाब में फेंक दीजिये तो आप देखंगे की वह तैर कर बड़े आराम से बहार निकल जाता हैं तो यह प्रशन उठता हैं की यह तैरना उसे किसने सिखाया किसी ने नहीं तो यह ही ज्ञान हैं जो अपने -आप निकलती हैं और हम मनुष्य बचपन से अभी तक सिखने में लगे हैं। किन्तु अब तक सीख नहीं पाए तो आईये जानते हैं की हम अबतक क्यू नहीं सिख पाए।


१/ माता -पिता : प्रत्येक माता -पिता अपने संतान को बड़ा लाड़ -प्यार से पालता हैं उसके हर जरुरत को पूरा करता है किन्तु उसे उस ऊचाई तक नहीं पहुँचा पाता हैं जिस उचाई पर पहुँचने के लिए उसे परमात्मा ने भेजा हैं ऐसा क्यू क्यूकि परमात्मा ने उसे जो ज्ञान दिया हैं उस ज्ञान का प्रयोग कर नहीं पाता हैं। यहाँ पर माता के कुछ अलग सपने हैं जिसे वह अपने समय में पुरा कर नहीं पाता तो इसे वह अपने संतान के द्वारा पुरा होता देखना चाहता दूसरी तरफ पिता के भी कुछ सपने हैं वह भी अपने सपने को संतान के द्वारा पुरा होते देखना चाहता हैं और संतान कुछ ओर करना चाहता हैं पर संतान ऐसा कुछ कर नहीं सकता क्यूकि वह नदान अज्ञानी हर संतान अपने माता -पिता के लिए नदान और अज्ञानी ही होता हैं तो संतान की कुछ चलने वाली हैं नहीं रही बात माता -पिता की तो उसमे जिसका पलड़ा भारी होगा संतान उसका ही सपना पुरा करेगा इस तरह संतान के पास जो प्रतिभा थी वह भीतर ही दब गई उसे जो परमात्मा ने जो ज्ञान देकर भेजा था वह उसे वापस लेकर जायेगा।


२/ परिवार :-  इनकी तो बात ही मत करिए ये तो आलू -प्याज के भाव ज्ञान बेचते हैं सम्पूर्ण जगत में यहीं तो एक ज्ञानी हैं ये कर लो ,व कर लो ,इसे करने ऐसा होता हैं वैसा होता हैं और ना क्या -क्या कहकर उस बच्चे कहाँ ढकेल देते जहाँ से वह कभी निकल ही ना पाय यदि आप ना मने तो उधारण भी देंगे की फला ने ऐसा किया तो ऐसा हुआ आप भी कर लो तो भला हो जायेगा इतना भला होता हैं की सारा जीवन चिंता में ही गुजर जाती हैं।


३ /स्कुल ,कॉलेज और विश्वविद्यालय  :-  यहाँ पर दो प्रकार के बच्चे आते है और दोनों एक साथ पढ़ते हैं जिसमे एक का जीवन आबाद होता है हैं तो दूसरा का बरबाद  तो आइए जानते हैं की एक आबाद तो दूसरा बरबाद


प्रथम बच्चा :- यह वह बच्चा हैं जो इसी के लिए बना हैं इनके अन्दर  एकाग्रता कूट -कूट कर भरी होती है जिसके कारण यह हमेशा अव्वल आता हैं और अपने जीवन में कुछ ऐसा कर देता हैं जिससे सारा जग़त को लाभ होता है तो क्या यह ज्ञान इसे स्कुल ,कॉलेज और विस्वविदायलय ने दिया नहीं यह तो इसके भीतर ही था बस इन्होने इसे सवारा हैं।

 द्वितीय बच्चा :- यह वह बच्चे हैं जिसे कुछ ओर बनना था और यह कुछ ओर बनने चले आए इनके साथ एक तरह से जबरदस्ती हो गई जिसके कारण यह पढ़ाई ऐसे करते हैं जिसका हमारे समाज में कोई मोल नहीं हैं अब यह जाय तो कहाँ जाय बस ठोकर खाते फिरता हैं यह तो पढ़ाई ऐसे की की ना ऑफीसर बन पाया और ना ही मजदुर।

c/कोण हैं ज्ञानी :- ज्ञानि वह हैं जो तोतो की भाषा नहीं बोलता वह अपनी भाषा बोलता हैं और जो अपनी भाषा बोलता है वह कोयल के भांति होता हैं जिसे कोई पिंजड़ा में कैद नहीं करता हैं। विद्या तो हम मनुष्य से प्राप्त करते हैं जो यहाँ आकर सीखता हैं परन्तु ज्ञान जन्म से ही प्राप्त होता हैं किन्तु मनुष्य उसपर धयान नहीं देता और विद्या प्राप्त करने में मनुस्यो में होड़ लगी रहती है जिससे केवल भौतिक सुख प्राप्त होता हैं जिसे पूर्ण रूप से पाकर भी दुःखी होता हैं और शांति को ढूंडता पर उसे शान्ति प्राप्त नहीं होता हैं क्यूकि मनुष्य ने विद्या को अधिक महत्तव दिया हैं और ईस्वर के द्वारा दिया ज्ञान पर कभी विचार नहीं किया हैं। जिसके कारण वह दब गया हैं हम भली -भाती जानते हैं की विद्या का जन्म ज्ञान से हुआ हैं जैसे आपकी इच्छा शक्ति प्रबल ना हो तो आप किसी विद्या को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।


ज्ञान की मात्रा जिस व्यक्ति में जितना होता हैं उसके अनुपात के हिसाब से ही विद्या प्राप्त करता हैं यहाँ वह विद्या  तो प्राप्त कर लेता है और ज्ञान को भूल जाता हैं जिससे ज्ञान का ना बहने से वह अधिक ऊंचाई पर नहीं चढ़ पता हैं अर्थात जन्म के समय उसे जो ज्ञान ईस्वर से प्राप्त होता उसे वह बढ़ाता नहीं हैं उसी मात्रा में छोड़ देता हैं और संसार के भौतिक सुख के प्रति लालशा को बढ़ाबा देता हैं और उसे प्राप्त करके भी दुःखी होता हैं यदि ना हो तो भी दुःखी होता हैं वास्तव में दुःख का कारण ज्ञान का ना होना हैं यदि मनुष्य के पास ज्ञान प्रथम स्थान पर हो और विद्या दूसरे स्थान पर हो तो मनुष्य को दुःख होगा ही नहीं।


ज्ञान को आज की दुनिया में कोई भी महत्तव नहीं देता हैं परन्तु आज जो कुछ भी निर्मित होता हैं वह ज्ञान से ही होता है ऐसे कितने  वैज्ञानिक है जिसने स्कुल ,कॉलेज और विश्वविद्यालय ना के बराबर गये हैं उनमे से एक हैं थामस ऐल्वा एडिसन।यह सभी जानते हैं और सभी को पता हैं जिसने बल्ब का अविष्कार किया जिससे आज सारा जगत रोशन हैं। ऐसे हम भली - भाति जानते हैं की विज्ञान का जन्म ज्ञान से ही होता है जो कुछ गिने चुने लोगो को ही प्राप्त होता हैं और जिसे प्राप्त हुआ है वह अमर हो गया है जैसे श्री राम चन्द्र ,वासुदेव श्री कृष्ण ,गौतम बुध ,वेद व्यास ,तुलसी दास ,कबीर दास ,रहीम दास इत्त्यादि। इन सभी को ज्ञान प्राप्त हैं और आज हम जो कुछ भी पा रहे हैं वह सब इन्ही का देन हैं आज जो हमलोग प्रगति किये हैं वह सब इन्ही का देन हैं। क्यूकि इन्ही लोगो ने जीवन का सही मतलब समझाने में सफल हुआ है।
                                                           जय वासुदेव श्री कृष्ण 

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