WHAT MEDITATION
ध्यान क्या है
धयान एक ऐसी परक्रिया है जहाँ हम एक गहरी नींद मैं चले जाते है जहाँ इस संसार की सारी अस्तितब समाप्त हो जाती है और केवळ मैं रह जाती है इस मैं को ही परमात्मा कहते है और इस क्रिया को ही परमात्मा का दर्सन होना कहा जाता हैं।
दर्शन का मतलब यह नहीं की आपको ब्रह्मा, बिस्णु, महेश दिखाई दे। धयान का वास्तिविक अर्थ खुद को जानना। खुद को जाने बिना इस संसार को ,इस संसार के नियम को नहीं जानना जा सकता। धयान ही वह रास्ता हैं जो इस प्रकृति को सहझने मैं सहायक है।
यदि आप प्रकृती को समहज गए तो बरम्हाण्ड को समहज गए जब बरम्हाण्ड को समहज गए तो खुद को समहज गए जब आप खुद को समहज गए तो परमात्मा को समहज गए और परमात्मा को समहज गए तो खुद को समहज गए और खुद को समहजना ही परमात्मा को समहजने के बराबर है।
क्याकि यहाँ हर व्यक्ति परमात्मा ही है। और खुद को जाने बिना आप कभी भी महान नहीं बन सकते क्याकि सब कुछ हमारे भीतर है इसलिए भीतर उत्तरना जरुरी हैं और भीतर धयान के द्वारा ही उत्तररा जा सकता है।
अब यहाँ धयान दो प्रकार की होति हैं एक वह धयान जो हम शांत बैठ कर करते हैं। और दूसरा वह धयान जब हम कोई कार्य ध्यान से करते हैं। दोनों को ही धयान कहा जाता हैं और दोनों ही परमात्मा तक जाती हैं।
अब यह आप पर निर्भर करता हैं की आप कार्य कितना धयान से करते है जितना ही धयान की मात्रा होंगी उतना ही परमात्मा आपके भीतर उत्तपन होगा इसलिए कोई भी कार्य हमें धयान से करना चाहिए डूब कर करना चाहिये तभी सफलता मिलती है। जब तक कोई कार्य हम धयान से ना करें तब तक हम ना सफल हो सकते और ना ही हम महान बन सकते हैं।
पर्वत काटना बड़ा आसान कार्य हैं किन्तु धयान करना बड़ा मुश्किल कार्य हैं क्यूकि सारे दुनिया का लफड़ा अपने सर पर लिए घुम रहें हैं अब इतना बौझ उठाकर हम कितना दूर जा सकते है। गाड़ी बंगला और मकान या फिर सोना -चांदी गहना बस इतना ही दूर चल सकते हैं इस से आगे नहीं।
इसलिए हमें इन सब जंजीरों से छूटना होगा जब तक हमरे पास यह जंजीर हैं तब तक हम ना धयान कर सकते हैं और ना ही कोई कार्य हम धयान से कर सकते है।
जय वासुदेव श्री कृष्ण
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