शुभं करोति कल्याणं कलनग्यं धनसम्पदा। शत्रु बुद्धिनविनाशाय दीपज्योतिरनस्तुते ।।

Thursday, November 15, 2018

RULES OF MEDITATION

                                            धयान के नियम 


धयान करने के हमने बहुत सारे नियम सुने है और किताबो मैं पढ़े है पर हमारे नजर मै इसका कोई नियम नहीं है यदी हम नियम को मानने लगे तो सारा जीवन नियम मानने मैं बीत जाएगी किन्तु नियम पुरा नहीं होगा क्यूकी हमारे पूर्वजों ने इतने नियम बना कर रखें है की जिसे पूरा करना सम्भव नहीं है।

तो अब प्रसन उठता है की धयान कैसे किया जाय जब हम कोई नियम ही नहीं मानेंगे तो धयान कैसे होगा। होगा अवसय होगा जहाँ कोई नियम ना हो वहाँ एक ही नियम कार्य करती वह नियम हैं आत्मा का नियम ,मन का नियम ,इच्छा का नियम

अब आत्मा का नियम ,मन का नियम ,इच्छा का नियम क्या हैं इसे कैसे किया जाय तो इसे करना बड़ा ही असान है बड़ा ही सरल और पवित्र हैं क्यूकी आत्मा ही परमात्मा हैं और परमात्मा से गलत हो जाय ऐसा हो ही नहीं सकता जो इतनी बड़ी बरम्हाण्ड को चलाता हो उस से ग़लती कैसे हो सकता हैं। यदि फ़िर भी हम उन पर प्रसन उठाते हैं तो हम से बड़ा मुर्ख कोई नहीं है।

 ,आत्मा का नियम वह नियम है जो सबसे श्रेष्ट है जहाँ आत्मा सात देता हो वह अतुल्य हैं। आत्मा हमारा वह मार्गदर्सक हैं जो हमें सही गलत का पहचान कराती है जो हमे सही निर्णय लेने मैं सहायता करती हैं। यदि हम आत्मा के सात चले तो सफ़लता निश्चित हैं।

अब आत्मा से धयान कैसे हों तो बड़ा सरळ हैं जो आत्मा को अच्छा लगे वह कार्य करना चाहिये। यदी आपका आत्मा कहता की हमे धयान करना है और ऐसे करना चाहिए तो बस सुरू कर दीजिए। यदी आपका आत्मा कहता हैं की हमे धयान करने से कोई लाभ नहीं है और मै इसे नहीं कर पाऊंगा तो मत कीजिये।

आपका आत्मा जीस कार्य मै लगता हों वही कार्य कीजिए उसी कार्य मैं आपको सफलता भी मिलेंगी और आप महानता को छु पाएंगे इसी मैं आपकी की भलाई है यदि आप आत्मा के बिरुद्ध जायेंगे तो कभी सफल नहीं होंगे। आप जिस कार्य के लिए बने वही कार्य कीजिए जिसके लिए परमात्मा ने आपको भेजा हैं।

अब दूसरा नियम आता हैं मन का और मन बड़ा चंचल हैं यह इतना चंचल क्यू हैं क्यूकि हम बाहरी बीसियों से बहुत अधिक आकर्सित होते हैं। यदि हम इसे अपने बस मैं कर ले तो हमारी सफलता निश्चित है। अपने बस मैं कहने का अर्थ हैं की आपने मन को अपने आत्मा के अधीन कर ले। यदि ऐसा हो जाय तो फिर कमाल हो जायेगा क्यूकि एक गाड़ी को योग डराइबर मिल जाय तो फिर एक्सीडेंट होगा ही नहीं।

अब तीसरा नीयम हैं इच्छा ,इच्छा एक ऐसी शक्ति हैं जो हमारा किसी भी कार्य को करने की छमता को बताता है किसी भी कार्य को पुरा करने के लिये इच्छा का होना जरूरी है यदि कोई कार्य करने की इच्छा ना हो और वही कार्य करें तो क्या वह कार्य पुरा होगा कभी नहीं।

किसी और की थोपी हुई इच्छा हमे कैसे फल सकता हैं कभी नहीं। इसलिए आप अपनी आत्मा की बात सुने अपनी मन की बात सुने उसी मैं आपकी भलाई हैं ओरो की बात ओरो के ऊपर छोड़ दे वह आपका नहीं है।

 अब मैं यह कहना चाहता हूँ की यहाँ धयान करने के लिए किस नीयम का पालन करना पड़ रहा है किसी नीयम का नहीं। आत्मा आपका ,मन आपका ,इच्छा आपका अब चाहें आप अपने आप को जिधर ले जाय यह आपके ऊपर निर्भर करता हैं।                                                                                                                                                                                                                         जय वासुदेव श्री कृष्ण        

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