शुभं करोति कल्याणं कलनग्यं धनसम्पदा। शत्रु बुद्धिनविनाशाय दीपज्योतिरनस्तुते ।।

Wednesday, May 29, 2019

Marriage Life

                                         शादीशुदा ज़िंदगी


शादीशुदा जिंदगी के कई मोड़ हैं जिसमें कभी ऊपर कभी नीचे हिचकोले खाते रहते हैं मैं इसी जीवन पर कुछ अपनी अनुभव रख रहा हूं मेरा या अनुभव है कि इस जीवन में दो रोल एक रोजगार दूसरा बेरोजगार का बड़ा महत्व होता है जो जीवन में चार चांद लगाता है या फिर भी चांद को ही उखाड़ कर फेंक देता है सारा खेल में रोजगार और बेरोजगारी का ही है अब आगे देखते हैं कि रोजगार का क्या रोल है और बेरोजगार का क्या रोल ह

रोजगार का होना :- यदि शादी करने से पूर्व वह  रोजगार है तो उसका शादीशुदा जीवन बड़ा ही आनंदमय व्यतीत होता है जिसका कोई हिसाब नहीं है वह अपने जीवन का वह सारे आनंद के मजे लेते हैं जो एक शादीशुदा जीवन के लिए बना हुआ रोजगार हो ना मानो शादी के लिए लॉटरी लग जाने के बराबर है अब बात यह होती है कि किसका रोजगार होना सबसे ज्यादा सुख दायक है पुरुष का या स्त्री का क्योंकि हम आधुनिक जीवन में जी रहे हैं यहां स्त्रियों के पास भी रोजगार होता है पुरुषों के पास भी रोजगार होता कई मामलों में दोनों रोजगार प्राप्त किए होते हैं यदि पुरुष के पास रोजगार हो तो उसका शादीशुदा जीवन कैसा होगा यदि स्त्री के पास रोजगार हो तो उसका शादीशुदा जीवन कैसा होगा इसे जानने का कोशिश करेंगे

पुरुष के पास रोजगार होना:- यदि पुरुष के पास रोजगार होता है तो उसका जीवन या फिर उसके साथ जिस स्त्री का जीवन जुड़ा है दोनों का जीवन बेहतर होता है क्योंकि समाज ने स्त्री को सहनशीलता अधिक प्रदान की है और पुरुष स्त्री की तुलना में सहनशीलता कम रखता है यदि पुरुष के पास रोजगार है तो निश्चित ही उसका जीवन आनंदमय  होगा जहां स्त्री उसके अधीन होते हैं और वह सारी इच्छा अपने पति के द्वारा प्राप्त करते हैं उसके अधीन होने के कारण वह आपस में तालमेल बिठाकर चलते हैं क्योंकि वह जानता है कि यदि हम विरोध करेंगे तो हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है इसलिए वह अपना सारा जीवन पुरुष के अधीन ही जीता है और इसमें देखा जाए तो दोनों का जीवन जो लगभग सुखी  पूर्वक व्यतीत होता है फर्क बस इतना ही होता है कि उस स्त्री की सारी इच्छाएं उस पुरुष की इच्छाओं पर निर्भर होता है वह अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी नहीं कर सकता उसे  अपनी इच्छा पूरी करने के लिए पति  से सलाह लेनी पड़ती है या फिर कह लो कि परमिशन लेनी पड़ती है

स्त्री के पास रोजगार का होना :-यदि स्त्री के पास रोजगार होता है तो शादीशुदा जीवन में थोड़ा मुश्किल  होता है क्योंकि पुरुष स्त्री की अधीनता को स्वीकार नहीं कर पाता इसलिए नहीं कर पाता कि हमारा समाज उसे उतना अधिक सहनशीलता नहीं बनाया है जितना कि एक स्त्री को सहनशीलता बनाया जिसके कारण पुरुष हमेशा स्त्रियों के ऊपर हावी रहता है यदि वह रोजगार हैं तो वह पूरी तरह नियंत्रण अपनी पत्नी के ऊपर रखता  है यदि पत्नी रोजगार है तो पुरुष उसका अधीनता को स्वीकार नहीं कर पाता यहां पर स्त्री  उसके ऊपर हावी हो जाती है जिसके कारण उसका शादीशुदा जीवन मुश्किल हो जाता है क्योंकि स्त्रियां कहती है कि मैं कमाता हूं मैं तुम्हें खिलाता हूं तो फिर मैं तुम्हारा बात क्यों मानूं तुम हमारी बात मानो तुम हमारे हिसाब से चलो जो या संभव नहीं है या फिर यूं कह लें कि समाज ने उसे इस स्थिति से जूझने की कला नहीं सिखाई है जिसके कारण उसका शादीशुदा जीवन मुश्किल में पड़ जाता

स्त्री और पुरुष दोनों के पास रोजगार का होना :-यदि दोनों के पास रोजगार हो तो शादीशुदा जीवन बड़ा ही दिलचस्प हो बन जाता है या तो यह जीवन खुशहाली से भरा होता है या फिर पूरा ही गमगीन हो जाता है क्योंकि यहां दोनों में से कोई भी किसी के अधीन नहीं है यहां पर यदि दोनों का जीवन आगे बढ़ता है तो केवल आपसी तालमेल और आपसी प्रेम के बदौलत यदि कोई भी एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश करता है तो उसका परिणाम बड़ा ही भयानक होता है जो की स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि डाइवोर्स का स्थिति आ जाता है क्योंकि दोनों ही आत्मनिर्भर हैं स्त्री भी और पुरुष भी यदि कोई एक दूसरे  को छोड़ दें तो वह किसी और के साथ होकर अपना जीवन आनंद पूर्वक व्यतीत कर सकता है

अब ऐसी स्थिति में यदि किसी का ज्यादा नुकसान होता है तो वह बच्चों को होता है उनका परवरिश पर इनका बुरा असर पड़ता है या फिर यूं कह लें की दो हाथी की लड़ाई में केले गाछ का  नुकसान होता है अब बात इतनी बिगड़ जाती है कि यदि पति हाईकोर्ट पहुंचता है तो पत्नी सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाती है तो यह निश्चित है कि दोनों में अब डायवोर्स होगा ही होगा यदि  डायवोर्स हो भी गया तो इसमें ना पति को नुकसान है ना पत्नी को सबसे ज्यादा नुकसान है तो फिर उस बच्चे की जो दोनों के अधीन है अब न्यायालय यह निर्णय करता है कि बच्चा यदि बच्चा है तो वह 18 वर्ष तक की मां के पास रहेगी उसके बाद वह अपनी इच्छा अनुसार पिता के पास जाना चाहता है तो वह जा सकता

अब बच्चे के लिए दोनों में ताना -घिची होती है इधर  मां अपने बच्चे को इस कदर पालती है या फिर इतना  जड़ी बूटी खिलाती है कि बच्चा पिता का नाम ही भूल जाए उधर पिता बच्चे को प्राप्त करने के लिए एड़ी और चोटी  एक कर देता है और  स्थिति कुछ इस तरह हो जाती है की  दोनों अलग होकर भी दोनों सुखी पूर्वक नहीं रह पाता सारा जीवन कोर्ट वकील जज इन तीनों के आगे  घूरते हुए व्यतीत होता है

रोजगार का होना या फिर बेरोजगार होना या दोनों ही हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित करती है जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग है यह केवल  हमारे समाज या भारत का  ही बात नहीं है लगभग ऐसे कई देश है जहां पुरुष और स्त्री रोजगार के लिए जूझते रहते हैं क्योंकि किसी महल में यदि आग लग जाए तो उसे 10-20 टैंकर पानी से बुझाया जा सकता है किंतु यदि पेट में आग लगी हो तो उसे बुझाना बड़ा ही मुश्किल है यह पेट की वह आग  जिसमें उसका सारा जीवन जलके राख हो जाता है यदि मनुष्य रोजगार प्राप्त कर लिया हो तो उसका सारा जीवन हंसी खुशी प्रतीत होता है यदि वह बेरोजगार है तो उसका जीवन मानव अभिशाप से कम नहीं है

                                       जय वासुदेव श्री कृष्ण

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