शुभं करोति कल्याणं कलनग्यं धनसम्पदा। शत्रु बुद्धिनविनाशाय दीपज्योतिरनस्तुते ।।

Sunday, July 21, 2019

Sex energy and its leela

                         सेक्स ऊर्जा और उसकी लीला


सेक्स ऊर्जा मनुष्य की सभी ऊर्जा में से एक  महा ऊर्जा है जो मनुष्य की जीवन की सारी लीलाएं इसी ऊर्जा पर निर्भर करती है।  मनुष्य जो कुछ भी सोचता है या बोलता है या फिर करता है या उनकी सभी क्रिएटिविटी  इन्हीं ऊर्जा से संचालित होती है।

कहने को तो यह सेक्स उर्जा है किंतु जब आप इसका मंथन कीजिएगा तो आप पाएंगे कि यही वह ऊर्जा है जो पूरी ब्रह्मांड को नियमित रूप से संचालित करती रहती है यह ऊर्जा इस पृथ्वी के हर एक कण में हर एक जीव जंतु में पाया जाता है।

इस ऊर्जा की परवाह दो तरफ होती है एक भीतर की ओर दूसरी बाहर की ओर भीतर की ओर ऊर्जा हमें क्रिएटिविटी करने को प्रेरित करती है और जो ऊर्जा बाहर की ओर परवाह  होती है हुआ वह हमारे जीवन की तमाम क्रियाकलापों को निर्धारित करती है अर्थात हम जो कुछ भी करते हैं या जो कुछ करने वाले होते हैं हमें यही भीतर से बाहर की ओर धक्का देती है।

इनकी  क्रियाओं को या इनकी  लीलाओं को संक्षिप्त रुप  से जाने की
कोशिश करते हैं इन्हें समझने के लिए हम इस ऊर्जा को दो भागों में बांटते हैं एक बाहर की ओर परवाह दूसरी भीतर की ओर परवाह

1 बाहर की और प्रवाह >  यह ऊर्जा मनुष्य की जीवन और मृत्यु और उनकी समस्त लीलाओं को निर्धारित करती है जब यह  बाहर की ओर परवाह होती है तो मनुष्य अपने जीवन की आम क्रियाओं को करते हैं उनमें कोई विशेष बात या विशेष क्रिएटिविटी नहीं होती है वह बस कमाना,खाना, पीना, घुरना , तेरा-मेरा, अपना-पराया, पाप -पुणे इन सभी कार्यों में उलझा रहता है।

अर्थात वह  एक साधारण मनुष्य के भांति जीवन को जीता है जिसका जीवन का कोई विशेष मकसद नहीं होता है। वह यूंही राही की तरह राह पर चलता ही रहता है। उसकी मंजिल कहां है उसे कहां तक जाना है यह सब बातों से अनजान रहता है।

हमारे जीवन की सारी खेल इन्हीं ऊर्जा  से प्रभावित होती रहती है।  इन ऊर्जा को पचा पाना बड़ा ही मुश्किल कार्य है। इन ऊर्जा को जिसने पचाया वह महामानव बन गया अर्थात अपनी उर्जा को सही दिशा देने की कला जिसमें आ गई वह परमात्मा हो गया अब ना उसमे  और ना ही परमात्मा में कोई अंतर है

क्योंकि यह  बड़ा ही  भयानक और विकराल होता है अर्थात इसका तेज सुर्य  से भी अधिक तेज होता  है जिस कारण हम इस तेज  को नहीं संभाल पाते हैं और इसे निकालने के कई बहाने ढूंढते हैं

जैसे ईर्ष्या , क्रोध, प्रेम, नफरत इन सभी भावनाओं से ओतप्रोत होते रहते हैं।  क्योंकि  यह ऊर्जा हमारे नियंत्रण में नहीं होती और यह हमसे जो कुछ भी करवाना चाहती है वह बड़ा सरलता पूर्वक करवा लेती है अन्यथा हमारे जीवन में हमें क्या पाना है क्या खोना है ना कुछ पाना है ना कुछ खोना है फिर भी जीवन में हजारों झंझट पाल कर रखे हुए हैं।

2 भीतर की ओर परवाह>  सेक्स ऊर्जा की परवाह यदि भीतर की ओर हो  रहा है तो फिर वह मनुष्य कोई आम मनुष्य नहीं है। उस मनुष्य का जीवन इस कदर चमक उठता है जैसे आकाश में सितारे चमकते रहते हैं उसी तरह वह मनुष्य जीवन रूपी ब्रहमांड में हमेशा चमकता ही रहता है।

यह मनुष्य हजारों में एक ,लाखों में एक ,करोड़ों में एक ही होते हैं यह वह मनुष्य है जिसने अपनी उस महान तेज को सही दिशा देने में सफल हो गया है।

इसमें कुछ अध्यात्मिक गुरु जी हैं ,कुछ अध्यात्मिक महापुरुष हैं ,कुछ वैज्ञानिक हैं ,कुछ लेखक हैं ,कुछ समाज सुधारक भी हैं। इन सभी की वजह से तो हमारा जीवन आज रंगीन है यदि यह लोग ना होते  तो हमारे जीवन के मुख मंडल पर  हमेशा उदासी की बादल छाया ही रहता।

 यह वही मनुष्य है जिसने अपनी उर्जा को अपने नियंत्रण में किया है। और अपने नियंत्रण में करने के कारण ही यह मनुष्य आज इस जीवन रूपी ब्रह्मांड में सितारों की भांति चमकता हुआ प्रतीत होता है जिसे हर एक बिछड़ा हुआ व्यक्ति उसके जैसा बनने की चेष्टा करता है।

किंतु यह तभी मुमकिन है जब हम अपनी सेक्स ऊर्जा को भीतर की ओर प्रभाव करना सीख जाए या फिर यूं कह लें कि हम अपनी ऊर्जा को सही दिशा देना सीख जाए।

अर्थात अपने तेज को उस कार्य में लगाएं जिस कार्य से इस संपूर्ण ब्रहमांड का हित हो ना कि अहित हो ब्रह्मांड का हित में ही हमारा हित है। यह परिभाषा तो  महामानव सरलता पूर्वक समझ सकते हैं।

किंतु आम मनुष्य के लिए या ज्ञान केवल एक रास्ते पर पड़े पत्थर के टुकड़ों के समान है जिसे व अपने पैरों से ठोकर मारते रहते हैं। जिसके कारण वह भी अपने जीवन की भवसागर में ठोकर खाते रहते हैं फिर भी उसे यह समझ में नहीं आता कि जीवन है क्या।

मैं इस ऊर्जा के बारे में बस दो शब्द आपको बताने की कोशिश की है इस ऊर्जा की व्याख्या करने में तो हमारा हजारों जीवन भी कम पड़ जाए।
                                                  जय वासुदेव श्री कृष्ण 

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