Political system and country's progress
राजनीतिक व्यवस्था और देश की प्रगति
राजनीतिक व्यवस्था ही किसी देश की भाग्य विधाता होती है। जिस देश की राजनीति व्यवस्था जितनी साफ-सुथरा होगी, उस देश का भविष्य उतना ही साफ-सुथरा और उज्जवल होगा किंतु मुझे इस बात का बहुत दुख है कि हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था में ना जाने कितने ही अवरोध हैं इस अवरोध के कारण हमारे देश की जिस हिसाब से प्रगति होनी चाहिए उस हिसाब से प्रगति नहीं हो पा रही है।अतः मैं अपने अनुभव के आधार पर अपने देश की प्रगति में अवरोधों का व्याख्या करने की कोशिश कर रहा हूं जो कुछ इस प्रकार है।
1 चुनावी बुखार> 1 वर्ष में 12 महीने होते हैं यह 12 महीना ही हमारे देश को चुनावी बुखार लगा ही रहता है। हर महीने हमारे देश में कहीं ना कहीं कोई ना कोई चुनावी बुखार लगा ही रहता है। जिसके कारण हमारा नेता देश की चिंता छोड़ अपनी सत्ता की चिंता करने लगता है कि हमारा सत्ता कहीं चली ना जाए अपनी सत्ता को बचाने के लिए रोडमैप बनाने में ही अपना बहुमूल्य समय गुजार देता है।
अर्थात जिस पैसे का, जिस अनुभव का जिस विशेषज्ञ का देश की प्रगति में ना लगाकर अपनी सत्ता के प्रगति में लगा देता है। जो हमारे देश की प्रगति के लिए सबसे बड़ा अवरोध है।
अतः हमें इस चुनावी बुखार की कोई न कोई दवा तो चुननी ही पड़ेगी नहीं तो हमारे देश का स्वास्थ्य इस तरह के बुखार से हमेशा ही पीड़ित रहेंगे जो हमारे देश की प्रगति में सबसे बड़ा अवरोध है।
2 नेता या अभिनेता> हमारे देश में कुछ नेता ऐसे भी हैं जो नेता कम अभिनेता ज्यादा लगते हैं। क्योंकि चुनावी मौसम में जब हमारे नेता को चुनावी बुखार लगते हैं तो उनमें से कुछ नेता अपनी नेता की वास्तविक गुण को छोड़ अभिनय करने लग जाते हैं। जैसे जनता के सामने बड़ी-बड़ी डींगे हाँकना झूठे वादे करना जो काम असंभव हैं उस काम को संभव बनाने का वादा करना इत्यादि।
यह सब एक प्रकार का अभिनय ही तो है और मजे की बात तो यह है कि जनता के सामने किस प्रकार का अभिनय किया जाए कि जनता को वास्तविक लगे। जिसके लिए वह बड़े-बड़े विशेषज्ञों को रखते हैं लाखों करोड़ों रुपया खर्च करते हैं केवल अभिनय करने के लिए देश की सेवा करने के लिए नहीं।
वह यह भी भलीभांति जानता है कि इस प्रकार के अभिनय हमारे देश के लिए कितना हानिकारक है फिर भी वह करते हैं केवल सत्ता की भूख मिटाने के लिए। सत्ता की भूख ऐसी भूख है जिससे कभी पेट भरता ही नहीं है। इस अभिनय के कारण ही सरकार में गलत लोग चले आते हैं जो हमारे देश की दशा और दिशा ही बदल देते हैं।
अतः इन नेताओं को इस अभिनय के बुखार से कैसे मुक्ति दिलाया जाए जो हमारे देश की प्रगति के अवरोधों में से दूसरा अवरोध है।
3 धर्म > हमारे देश में विभिन्न प्रकार के धर्म है हर एक धर्म की अपनी-अपनी मान्यता इन विभिन्न मान्यताओं के कारण आपस में टकराव होती रहती हैं। इस टकराव में धर्म के ठेकेदार की अहम भूमिका होती है।और यह ठेकेदार यह भली-भांति जानता है कि हमारे देश में हजारों नदी है किंतु सब नदी को अंतिम में सागर में ही जाना है। ठीक उसी प्रकार हर धर्म की परवाह एक ही सुप्रीम पावर की ओर जाती है।
फिर भी यह लोग अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए धर्म की परिभाषा को तोड़ती है, मरोड़ती है। इस प्रकार के धार्मिक ठेकेदार यदि राजनीतिक में आ जाए तो राजनीति की परिभाषा ही बदल जाती है। फिर कानून भी धर्म के हिसाब से बनते हैं जिससे समाज के एक हिस्से में उजाला होता है तो दूसरे हिस्से में अंधेरा जिसके कारण देश का संपूर्ण प्रगति नहीं हो पाता।
धार्मिक बुखार एक ऐसी प्रचंड बुखार है कि जिसका इलाज मुझे असंभव सा लगता है यह हमारे देश की प्रगति के अवरोधों में से एक ऐसाअवरोध है जिसकी ऊंचाई हिमालय से भी 4 गुना अधिक है इसलिए मुझे इसका इलाज असंभव सा लगता है।
4 सत्ता या व्यवसाय > आज की दौर में हर एक व्यक्ति नेता बनने की होड़ में खड़ा है। वह इसलिए कि यदि एक बार हमें सत्ता मिल जाए तो मेरे साथ साथ मेरे परिवार का भी उद्धार हो जाएगा यही सोचकर वह चुनाव में लाखों करोड़ों रुपया खर्च कर देते हैं। यदि वह जीत जाए तो शुद्ध सहित अपने सत्ता का दुरुपयोग कर पैसा निकाल लेते हैं।
अर्थात इस तरह के लोगों का मानना है कि सत्ता में ₹10 लगाओ और ₹100 कमाओ, आम जनता उसे देश की सेवा करने के लिए चुनता है और व्यक्ति सत्ता को व्यवसाय बना लेता है। इस प्रकार हमारे कुछ नेताओं की मनोदशा ने हमारे देश को बहुत पीछे धकेल दिया है
यदि कुछ नेता अच्छा भी हैं तो उनको प्रगति करने के लिए लोहे के चने चबाने के समान प्रतीत होता है। वह भी घुटना टेक देता है की इतनी बड़ी खाई को कैसे भरा जाए जिसे भरने में और न जाने कितने समय लगेंगे
यह मेरा मानना है कि जब तक इस देश मैं इस तरह की भावना रहेंगी तब तक हमारी प्रगति धिमी रफ़्तार से ही होगी।
जय वासुदेव श्री कृष्ण
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