THE FORMS OF GOD
परमात्मा का रूप
परमात्मा का रूप कैसा होता हैं जैसा हमारे पूर्वजों ने बताया क्या वैसा ही होता हैं यदि नहीं तो फ़िर कैसा होता हैं क्या आपने कभी बिचार किया है नहीं किया है क्यू नहीं किया क्यूकि हमे कभी आवश्कता नहीं पड़ी क्यूकि हम अपने आप मै इतना उलझे हुए हैं की खुद की उलझन सुलझाते -सुलझाते खुद समाप्त हो जाते है पर उलझन समाप्त नहीं होता हैं।
परमात्मा एक ऐसा शब्द जहाँ हर कोई आकर रुक जाता हैं सारे बिचारो का उफान बस यह एक शब्द पर आकर रुक जाती हैं। बहुत कुछ देखते हैं, बहुत कुछ सुनते हैं, बहुत कुछ बोलते हैं लेकीन जब परिभाषित करने की बारी आती हैं तब हम मौन हो जाते हैं क्यूकि हम जानते ही नहीं की परमात्मा कौन हैं रहता कहाँ हैं दिखता कैसा हैं।
इनका नाम आते ही हजारो प्रशन हमारे मन मैं उठने लगता हैं किन्तु उत्तर नहीं मिलता ओर उत्तर बड़ा सरल हैं। यदि मैं बता दू तो आप हँसोगे क्यूकि आप को हँसने की आदत हैं यदि मैं यह कह दू की आपकी हँसी ही परमात्मा हैं तब क्या करोगे। जरा सोचो दिमाग की बत्ती लाल बुलु हरा पीला हो जाएगी।
हम और आप और यह सारा जगत भली -भाँति जानता हैं की परमात्मा सर्वव्यापी हैं वह कण -कण मैं हैं और यह हम मानते हैं और हम अपनाते भी हैं। पर क्या हम वास्तब मैं अपनाते हैं बिलकुल नहीं जरा सोचे।
जब हम अपने परिवार में या फिर बहार किसी से जागड़ा कर लेते है तो फ़िर हम उसे देखना पसन्द नहीं करते और दुसरी तरफ हम कहते हैं की परमात्मा कण -कण में हैं जब यह बात सत्य हैं तो फिर हम जिसे देखना पसन्द नहीं करते वह भी तो परमात्मा का ही रूप हैं। जब हम उसे नहीं अपना पाते तो परमात्मा को क्या खाक अपनाएँगे।
किसी एक से मुँह फेरने का अर्थ होता हैं परमात्मा की अस्तितव से मुँह फेरना। और हम परमात्मा की सवरूप की बात करते हैं उनका एक रूप को तो अपना नहीं पाते। पहले इन्हे तो अपना लीजिए इन्हें अपनाने से परमात्मा स्वता प्रकट हो जाएगी।
रही बात अब परमात्मा की रूप की तो परमात्मा का रूप इतना बिकराल हैं की वह हमारे बिबेक ,बद्धि से परे यदि हम उनका रूप देखना चाहें तो यह सम्भव नहीं हैं। हमारी आँखों की ,हमारी बुद्धि की उतनी छमता नहीं नहीं हैं की उन्हें समझ सके जिस तरह एक छोटी सी पात्र में समुन्द्र नहीं समा सकता उसी तरह इस छोटी सी शरीर के द्वारा परमात्मा को कहाँ तक समझ सकते हैं।
यदि मैं कहुँ की ऐसा कौन सा पात्र हैं जिसमे समुन्द्र समा जाए कोई नहीं हैं यदि मैं कहुँ की क्यू ना ऐसी कोई पात्र बनाया जाय जिसमें सारा समुन्द्र आ जाय क्या हम ऐसा कर सकते हैं कभी नहीं। यदि सारा जगत मिलकर यह काम करें तो भी यह नहीं कर सकते या फ़िर यु कह ले की यह असम्भव हैं
जब हम परमात्मा की यह छोटी सी बनाई हुई अजुबा को हम कोई पात्र में नहीं ले सकते तो परमात्मा को कैसे समझ सकते है हम केवल परमात्मा की आस्तित्व का अनुभव कर सकते हैं। उनके द्वारा बनाए गए नाना प्रकार की जीव -जन्तु ,पेड़ -पौधा ,नदी -तालाब इत्यादि से आनन्द लें सकते हैं। यह आनन्द ही परमात्मा हैं ,यह अनुभुति ही परमात्मा हैं।
दुसरी तरफ परमात्मा का रूप इतना ही सुच्छम हैं की हम उन्हें देख ही नहीं सकते और ना ही हमारे पास ऐसा कोई यंत्र जिसके द्वारा देखा जा सके जिस तरह हवा को हम नहीं देख सकते उसी तरह हम परमात्मा को भी नहीं देख सकते केवल अनुभव कर सकते हैं।
यहां तक की हम परमात्मा के रूपों की भी बियाख्या भी नहीं कर सकते अभी तक तो हमरे पास उनके द्वारा रचा हुआ जगत की पार्याप्त जानकारी भी नहीं हैं तो उनके रूपों की बियाख्या कैसे कर सकते हैं यह असम्भव हैं और यह असम्भव था और असम्भव रहेगा। जय वासुदेव श्री कृष्ण
हम और आप और यह सारा जगत भली -भाँति जानता हैं की परमात्मा सर्वव्यापी हैं वह कण -कण मैं हैं और यह हम मानते हैं और हम अपनाते भी हैं। पर क्या हम वास्तब मैं अपनाते हैं बिलकुल नहीं जरा सोचे।
जब हम अपने परिवार में या फिर बहार किसी से जागड़ा कर लेते है तो फ़िर हम उसे देखना पसन्द नहीं करते और दुसरी तरफ हम कहते हैं की परमात्मा कण -कण में हैं जब यह बात सत्य हैं तो फिर हम जिसे देखना पसन्द नहीं करते वह भी तो परमात्मा का ही रूप हैं। जब हम उसे नहीं अपना पाते तो परमात्मा को क्या खाक अपनाएँगे।
किसी एक से मुँह फेरने का अर्थ होता हैं परमात्मा की अस्तितव से मुँह फेरना। और हम परमात्मा की सवरूप की बात करते हैं उनका एक रूप को तो अपना नहीं पाते। पहले इन्हे तो अपना लीजिए इन्हें अपनाने से परमात्मा स्वता प्रकट हो जाएगी।
रही बात अब परमात्मा की रूप की तो परमात्मा का रूप इतना बिकराल हैं की वह हमारे बिबेक ,बद्धि से परे यदि हम उनका रूप देखना चाहें तो यह सम्भव नहीं हैं। हमारी आँखों की ,हमारी बुद्धि की उतनी छमता नहीं नहीं हैं की उन्हें समझ सके जिस तरह एक छोटी सी पात्र में समुन्द्र नहीं समा सकता उसी तरह इस छोटी सी शरीर के द्वारा परमात्मा को कहाँ तक समझ सकते हैं।
यदि मैं कहुँ की ऐसा कौन सा पात्र हैं जिसमे समुन्द्र समा जाए कोई नहीं हैं यदि मैं कहुँ की क्यू ना ऐसी कोई पात्र बनाया जाय जिसमें सारा समुन्द्र आ जाय क्या हम ऐसा कर सकते हैं कभी नहीं। यदि सारा जगत मिलकर यह काम करें तो भी यह नहीं कर सकते या फ़िर यु कह ले की यह असम्भव हैं
जब हम परमात्मा की यह छोटी सी बनाई हुई अजुबा को हम कोई पात्र में नहीं ले सकते तो परमात्मा को कैसे समझ सकते है हम केवल परमात्मा की आस्तित्व का अनुभव कर सकते हैं। उनके द्वारा बनाए गए नाना प्रकार की जीव -जन्तु ,पेड़ -पौधा ,नदी -तालाब इत्यादि से आनन्द लें सकते हैं। यह आनन्द ही परमात्मा हैं ,यह अनुभुति ही परमात्मा हैं।
दुसरी तरफ परमात्मा का रूप इतना ही सुच्छम हैं की हम उन्हें देख ही नहीं सकते और ना ही हमारे पास ऐसा कोई यंत्र जिसके द्वारा देखा जा सके जिस तरह हवा को हम नहीं देख सकते उसी तरह हम परमात्मा को भी नहीं देख सकते केवल अनुभव कर सकते हैं।
यहां तक की हम परमात्मा के रूपों की भी बियाख्या भी नहीं कर सकते अभी तक तो हमरे पास उनके द्वारा रचा हुआ जगत की पार्याप्त जानकारी भी नहीं हैं तो उनके रूपों की बियाख्या कैसे कर सकते हैं यह असम्भव हैं और यह असम्भव था और असम्भव रहेगा। जय वासुदेव श्री कृष्ण
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