Effects of Natural Love [Part-3]
प्राकृतिक प्रेम का प्रभाव [भाग -३ ]
कुदरती प्रेम यदि बचपन में ना हुआ और ना ही जवानी में हुई तो यह निश्चित है कि वह अधेड़ अवस्था या बुढ़ापा में अवश्य होगी। हम आप सभी लोग यह जानते हैं कि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अधेड़ अवस्था में या फिर बुढ़ापे में भी प्रेम कर बैठते हैं। यह उनका गलती नहीं है यह प्रकृति का विशेष प्रभाव उसके मनोदशा पर पड़ती है। जिसके कारण उसे कुछ समझ में नहीं आता कि वह क्या कर रहा है बस उसे अपनी प्रेमिका ही दिखाई देती है जिसके लिए वह अपना पत्नी, बच्चा, घर ,परिवार सब कुछ छोड़ देता है। और अपने प्रेमिका के साथ हो जाता है। यह वास्तव में कुदरती प्रेम का अद्भुत प्रभाव है जिसे हम -आप या कोई और अभी तक समझ नहीं पाया कि यह अपना प्रभाव किस तरह डालता है हम लोग आधुनिक युग में जी रहे हैं फिर भी इस तरह की गलतियां कर बैठते हैं जिसका परिणाम बड़ा भयानक ही आता है। इस प्रेम के कारण ही हमारा बना बनाया हुआ सब कुछ बिगड़ जाता है और हम सड़क पर चले आते हैं।
प्रभाव :-अधेड़ अवस्था वह अवस्था है जहां पर हम सब कुछ प्राप्त कर आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं किंतु प्रकृति अपना प्रभाव हर पल हमारे ऊपर डालती रहती है। उनके प्रभावों में से एक प्रभाव कुदरती प्रेम है जो मनुष्य के जीवन में कभी भी किसी भी अवस्था में आ जाती है। जब यह आती है तो हम पर बड़ा ही जोशीला प्रभाव डालती है जिसके चक्कर में हम ना चाहते हुए भी आ जाते हैं। हम जानते हैं कि हम जो कर रहे हैं उसका क्या परिणाम आएगा फिर भी हम वही करते हैं जो हमसे प्रकृति करवाना चाहती है। प्रकृति के प्रभाव में आकर हम प्रेम तो कर लेते हैं किंतु समाज हमारा बहुत दूर तक पीछा करती है और जब समाज हमें पकड़ती है तो वह सीधा हमारा कॉलर पकड़ती है ताकि हमारा बना बनाया हुआ मान-सम्मान सब कुछ मिट्टी में मिल जाता है।
इस अवस्था में हमें ना दौलत बनाने की लालच होती है क्योंकि हम वह जगह पा चुके होते हैं, ना ही हमें कामवासना की हवस होती है क्योंकि वह भी हम अपनी पत्नी के द्वारा प्राप्त कर लेते हैं। फिर भी हम इस प्रकृति के अद्भुत प्रेम लीला में फस जाते हैं जिसकी कारण हमें बड़ी कीमत चुकानी पड़ती हैयह प्रेम हमारे जीवन में कुछ ही दिन रहता है और कुछ दिन में ही हमारा सब कुछ बर्बाद कर देता है क्योंकि अधेड़ अवस्था तक हम पहुंचते-पहुंचते एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होते हैं किंतु इसके प्रभाव में आने पर हम अपनी प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा देते हैं।
दुष्परिणाम :-हम लोग यह भली-भांति जानते हैं कि हमारा समाज इस तरह के प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर पाता जिसके कारण हमें समाज में अपनी बनी बनाई हुई मान-सम्मान को खोना पड़ता है। जिसके कारण हम कहीं के नहीं रहते हैं हमारा घर परिवार पत्नी बच्चे सब कोई नफरत करने लगते हैं। हमारी अंदर की उस भावना को कोई नहीं समझ पाता है। ना समझने के कारण ही हमारा समाज हमें गलत समझ लेता है जो हम ना चाहते हुए भी वह प्रेम कर बैठे इसलिए मेरा मानना है कि हमें इस अवस्था में सावधान हो जाना चाहिए प्रेम यदि बचपन में हो या जवानी में हो तो समाज कुछ हद तक बर्दाश्त करता है। किंतु यदि अधेड़ अवस्था में हो जाए तो हमारा समाज कदापि बर्दाश्त नहीं करेगा इसलिए अपने मन को अपने नियंत्रण में रखना जरूरी है यदि हम अपने पांच इंद्रियों को अपने बस में रखते हैं तो प्रकृति हम पर वह विशेष प्रभाव नहीं डाल पाते जिससे मेरा सारा जीवन आनंदमय से बीतता है।
हमें क्या करना चाहिए:- मेरा मानना है कि इस अवस्था में हमें पूर्ण रूप से सावधान रहना चाहिए प्रकृति अपना प्रभाव एक निश्चित समय के लिए डालती हैं। यदि हम धैर्य के साथ उस समय को पार कर लेते हैं तो हम इस गलती को करने से बच जाएंगे यदि फिर भी हम अपने आपको यदि काबू नहीं कर पाए तो हमें अपनी पत्नी बच्चा परिवार को कभी नहीं त्यागना चाहिए क्योंकि वास्तव में वही हमारा साथ रहेगा वही हमारा सेवा करेगा इसलिए सोच समझ कर यह निर्णय करें कि हमें प्रेम करना चाहिए या नहीं करना चाहिए जाने अनजाने में हम जो कुछ भी गलती करते हैं उसका परिणाम आगे जाकर हमें प्राप्त होता है किंतु हमें उन लोगों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए जो लोग हमारे लिए हमेशा चिंता करते हैं। क्योंकि कोई भी महल बनाने में बड़ा ही एक लंबा समय और परिश्रम लगता है किंतु उसे तोड़ने में या बिखेरने में बस कुछ पल ही लगता है इसलिए अपने बने बनाए हुए आशियाना को ना उखाड़े अब आगे आपकी मर्जी आपकी जिंदगी आपके हाथ में ही हैं।
बुढ़ापे की प्रेम कहानी हम आपको आगे सुनाएंगे
जय वासुदेव श्री कृष्ण
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