शुभं करोति कल्याणं कलनग्यं धनसम्पदा। शत्रु बुद्धिनविनाशाय दीपज्योतिरनस्तुते ।।

Monday, May 27, 2019

Effects of Natural Love [Part-4]

                प्राकृतिक प्रेम का प्रभाव [भाग - ४  ]


जैसा मैंने पिछले अध्याय में बताया था कि कुदरती प्रेमाने की कोई अवस्था नहीं होती है वह मनुष्य के किसी भी अवस्था में आती है यह जरूरी नहीं कि वो जवानी में ही हो यदि वह बचपना जवानी या अधेड़ अवस्था में ना हुई तो बुढ़ापे में तो निश्चित ही होगी अब रही बात बुढ़ापे की तू जो बूढ़ा व्यक्ति होता है वह शरीर से तो बड़ा हो जाता है किंतु उसका मन वह 13 साल में ही अटका हुआ रहता है वह मन से अपने आप को जवान जोशीला समझता है भले वह शरीर से लाचार हो गया और इसका फायदा कुदरत बहुत अच्छी तरह से उठा लेता है इसी के कारण उसके जीवन में जीवन की अंतिम चरण में प्रेम दस्तक दे देता है और यह दस्तक ऐसी दस्तक है जहां पर मनुष्य की जीवन का अंतिम चरण होता है वह कब कब्र में चला जाए यह कोई नहीं जानता किंतु फिर भी वह जीने की चाह में आता है और कुदरती प्रेम उसके ऊपर उस तरह ही प्रभाव डालती हैं जैसे एक जवान लड़के के ऊपर प्रभाव डालती है तथा यहां उस व्यक्ति की कोई गलती नहीं होती वह तो तेलुगु नी माया से बना हुआ है जो चाह कर भी कुछ कर नहीं पाता



प्रभाव :-अब यहां यह प्रश्न उठता है कि आप अरे उस पर अपना प्रभाव कैसे डालती है क्यों डालती है क्यों मनुष्य सब कुछ जानने के बावजूद भी यहां पर जाता है अर्थात मनुष्य समाज से जितना भी ज्ञान प्राप्त कर ले फिर भी वह कुदरत का आगे अज्ञानी ही है वह ना कभी कुदरत को जान पाया है ना कभी जान पाएगी इसी का फायदा कुदरत उठाती है और उसके जीवन में तू प्रेम भर देता वास्तु में प्रेम तो खराब है नहीं किंतु हमारा समाज प्रेम को एक समय सीमा तक ही बर्दाश्त करता है यदि समय से पहले आ जाए यह समय के बाद आ जाए तो फिर समाज उसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगा किंतु मन और आत्मा की भूख ना मिटने पर मनुष्य की जो प्रमुख रूप होती है वह प्रेम का बुक होता है जिसे परमात्मा मिटाना चाहता है और परमात्मा उस भूख को मिटाने की चाहत में उसे प्रेम देता है किंतु तू प्रेम पाकर भी समाज से उसे संघर्ष करना पड़ता है सीधी उस प्रेम के आगे समाज का संघर्ष फीका पड़ जाता है इतना फीका पड़ता है कि उस मौज में उसे कुछ दिखाई नहीं देता ना समाज ना परिवार ना देश ना दुनिया बस वह चाहता है कि किसी तरह हम या हमारा जीवन आनंद से भर जाए और मैं इस संसार से मुक्त हो जाओ किंतु इतनी आसान नहीं है इस संसार से मुक्ति पाना



प्रभाव :-हम जिस समाज में रहते हैं उस समाज की ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो कभी प्रेम ना किया हो किंतु फिर भी वह प्रेम से उतना ही नफरत करता है जितना वह एक शत्रु से नफरत करता है अब वह क्यों नफरत करता है यह वही जाने उसे ऐसा प्रतीत होता है कि प्रेम आने से सब कुछ छीन जाएगा या प्रेम एक बगावत का नाम है किंतु प्रेम परमात्मा को पाने का एक सरल  रास्ता है यहां पर मनुष्य की आत्मा तृप्त होती है फिर भी उसे पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है ऐसा संघर्ष कि समाज में बनी बनाई हुई मान प्रतिष्ठा सब कुछ मिट्टी में मिल जाता है अगर देखा जाए तो कोई भी व्यक्ति की आत्मा से पूछे कि क्या वह व्यक्ति गलत है तो वह कभी नहीं कहेगा किंतु अधिकतर व्यक्ति दिमाग से करते हैं इसलिए हर व्यक्ति को प्रेम गलत दिखाई देता है जो व्यक्ति गलत कहता है वह व्यक्ति यदि अकाउंट में आ जाए वह यह भी सोचता है कि शायद मुझे भी ऐसा प्रेम मिला होता



हमें क्या करना चाहिए:- या इस अवस्था में बहुत बड़ी प्रश्न है इस प्रश्न का उत्तर देना इतना सरल नहीं है क्योंकि बुढ़ापे में यदि कोई तमाचा  भी मारे तो आत्मा तब तक हिल जाता क्योंकि शारीरिक रूप से हम किसी भी परी तारना को नहीं संभाल पाते हैं हम शरीर  से इतना कमजोर होते हैं कि किसी को झेल पाना हमारे बस की बात नहीं है इसलिए इस जगह पर मनुष्य को हमेशा सावधानी पूर्वक जीना  चाहिए या फिर यूं समझ ले यह जो कुदरती प्रेम है यदि हम सूझबूझ कर चले तो यह पूछ दिन का ही है यह  हमेशा तो हमारे जीवन में रहेगी नहीं और ऐसे भी हमारा जीवन अंतिम चरण में है तो हम सावधानी बरते  तो समाज का थप्पड़ पड़ने  से भी हम बच  जाएंगे और अपने जीवन को आनंद  में बदल सकते हैं

                                   जय वासुदेव श्री कृष्ण

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